Tulsidas Ke Guru Kaun The:- तुलसीदास जी भारत देश के मशहूर हिंदी कवि थे। जिन्होंने भारतीय साहित्य का नाम उच्चा कर दिया। उनकी प्रमुख रचनाओं में से एक है रामचरितमानस, जिसे रामायण का हिंदी अनुवाद माना जाता है। तुलसीदास जी की रचनाएँ आध्यात्मिकता, प्रेम, और जीवन के विभिन्न पहलुओं को छूने वाली होती हैं। तुलसीदास जी ने अपनी रचनाओ में अपने गुरु के बारे में जीकर किया करते थे लेकिन क्या आप जानते हैं तुलसीदास के गुरु कौन थे ? तुलसीदास जी ने अपनी शिक्षा किनसे ली ?
अगर आपको तुलसीदास के गुरु का नाम नहीं पता हैं, तो इस लेख को ध्यान से जरुर पढ़े। क्योकिं आज हम आपको तुलसीदास जी के बारे में सारी बारे बताने जा रहे हैं। जिससे आपको तुलसीदास के गुरु का नाम, उन्होंने कहाँ से शिक्षा प्राप्त की, तुलसीदास जी जन्म कब हुआ था, तुलसीदास जी के माता-पिता का नाम क्या था ? तुलसीदास ने कौन कौन रचनाये की आदि के बारे में यहाँ पर सिखने को मिलेगा।
Tulsidas Ke Guru Kaun The
तुलसीदास जी के गुरु का नाम नरहरिदास था। नरहरिदास का जन्म सन् 1733 में भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में हुआ था। नरहरिदास के माता-पिता का नाम मथुरा दास और मैना देवी था। नरहरिदास जी की रचनाये प्रेम सागर, कुसुम विलास, सुरसागर, प्रेमानन्द, सुरसरावली की हैं नरहरिदास तुलसीदास जी के विशेष गुरु थे नरहरिदास एक प्रमुख रामनंदी संत थे, जिन्होंने तुलसीदास को भगवान राम की भक्ति में मन लगाने को कहाँ था।
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तुलसीदास जी ने अपने काव्य ‘रामचरितमानस’ में नारद मुनि का भी उल्लेख किया है, लेकिन वे उनके प्रत्यक्ष गुरु नहीं थे। नरहरिदास का तुलसीदास के गुरु होने का उनके जीवन और काव्य पर गहरा प्रभाव पड़ा और यही कारण है, कि उनका काव्य आज भी हमारे दिलों में गूंजता है।
नरहरिदास जी ने कौन कौन सी रचनाएं लिखीं ?
नरहरिदास जी हिंदी साहित्य में एक प्रसिद्ध कवि रहे हैं, जिन्होंने कई महत्वपूर्ण रचनाएं लिखीं जो हमने निचे की तरफ बताई हैं।
सुरसागर
यह एक मशहूर काव्य संग्रह है, जिसमें नरहरिदास जी ने भक्ति के माध्यम से प्रेम और दिव्यता के बारे में बताया है। इसमें उन्होंने सूरदास, कबीर, रहीम, और अन्य संतों के द्वारा लिखे गीतों को भी जोड़ा है।
प्रेमचन्द्री
यह एक मशहूर महाकाव्य है, जिसमें नरहरिदास जी ने प्रेम की गहराईयों, विरह के दर्द, और भक्ति के बारे में विस्तार से बताया है। प्रेमचन्द्री महाकाव्य में नरहरिदास जी ने प्रेम में कितनी गहराई होती हैं। सच्चे प्रेम में विरह का कितना दर्द होता हैं और किस तरह से भगवन की भक्ति करनी चाहिए के बारे में बताया हैं।
कुंदमोर
यह एक मशहूर काव्य है, जिसमें नरहरिदास जी ने कृष्ण और राधा के प्रेम की गाथा सुनाई है। इस रचना में प्रेम, विरह, और दिव्यता के बारे में बताया गया हैं।
इनके अलावा, नरहरिदास जी ने “सुधाकलश” और “द्रोपदी” जैसी और रचनाएं भी लिखीं हैं।
तुलसीदास जी कौन थे ? Tulsidas Kaun The ?
तुलसीदास जी भारतीय साहित्य में एक महान कवि थे। तुलसीदास जी का असली नाम गोस्वामी तुलसीदास था। तुलसीदास जी भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में रहते थे। तुलसीदास जी का जन्म कब हुआ यह किसी को नहीं पता हैं। बड़े बड़े विद्वानों ने अपने अपने मत दिए हैं। बेनिमाधवदास ने तुलसीदास जी का जन्म 1554 ई. में बताया हैं शिवसिंह सरोज में तुलसीदास जी का जन्म 1583 में बताया गया हैं। साक्ष्य के आधार पर तुलसीदास जी का जन्म सन्न 1532 ई. में माना गया हैं और तुलसीदास जी की मृत्यु 1623 ई. में हुयी थी।
तुलसीदास जी ने हिंदी साहित्य को बहुत योगदान दिया है। उनकी प्रमुख रचनाओं में से एक रामचरितमानस हैं जिसे रामायण का हिंदी अनुवाद माना जाता है। रामचरितमानस में तुलसीदासजी प्रभु श्रीराम के जीवन और उनकी कथाओं का वर्णन किया हैं। रामचरितमानस उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना में से एक है।
रामचरितमानस के अलावा तुलसीदास जी की और भी कई रचनाएं हैं, जैसे विनय पत्रिका, कवितावली, कृतविद्या, जानकी मंगल, हनुमान चालीसा आदि। तुलसीदासजी श्री राम के बहुत बड़े भक्त थे। ऐसा माना जाता हैं, की तुलसीदास जी ने प्रभु श्री राम को देखा हैं तुलसीदास जी भारत देश के बड़े संत-कवी थे उनका नाम आज भी हमने भगवान की किताबो में देखने को मिलता हैं।
Tulsidas Jivan Parichay In Hindi
तुलसीदास जी का जन्म 1532 ईस्वी में महाराष्ट्र के राजपुर गाँव में हुआ। उनके पिता का नाम अत्मराम था। और माता का नाम हुलसीबाई था। तुलसीदास जी का एक भाई था उनका नाम गोपाल था तुलसीदास जी ने अपने बचपन में ज्ञान प्राप्त किया था और उन्होंने अपने गाँव के पंडित से वेद-शास्त्रों का अध्ययन किया।
तुलसीदास जी की शादी सन् 1573 में रत्नावली से हुयी थी। तुलसीदास जी की पत्नी बहुत सुन्दर थी तुलसीदास अपनी रूपवती पत्नी के प्रति बहुत पागल थे। जब तुलसीदास जी की पत्नी रत्नावली एक बार जब मायके गई तो तुलसीदास जी उनके बिना रह नहीं पाए और आधी रात को ही अपनी पत्नी से मिलने के लिये चले गए रस्ते में एक नदी आती हैं। लेकिन वहां पर कोई नाव नहीं होती हैं। चढ़ी नदी उफान में थी लेकिन तुलसीदास जी ने चढ़ी नदी में तैरकर पार कर लिये। रत्नावली के मायके के घर के पास खड़े हो गए और सोचने लगे की अब घर के अंदर कैसे जाऊ तुलसीदास जी ने चारो तरफ देखा तो पाया की रत्नावली के घर के पास वाले पेड़ पर एक सांप लटका हुआ था। लेकिन यह बात तुलसीदास जी को पता नहीं थी।
पेड़ पर लटके सांप को रस्सी समझ कर ऊपर चढ़ गये और अपनी पत्नी के पास जा पहुँचे तब इनकी पत्नी रत्नावली ने इन्हें धिक्कारते हुए कहा कहती हैं।
लाज न लागत आपको दौरे आयहु साथ।
धिकधिक ऐसे प्रेम कहा कहाँ मैं नाथ ।।
अस्थि चर्म मम देह यह, ता सो ऐसी प्रीति ।
नेकु जो होती राम से, तो काहे भव भीति ।।
अर्थ:- तुलसीदास जी को उनकी पत्नी कहती हैं, “तुम्हें लाज नहीं आई तुम दौड़ते हुए मेरे पास आ गए। हे नाथ! अब मैं आपसे क्या कहूँ। तुम्हारे ऐसे प्रेम पर मैं धिक्कार हैं मुझे। ऐसे प्रेम का मैं क्या करू ? मेरे प्रति जितना प्रेम तुम दिखा रहे हो, उसका आधा प्रेम भी अगर तुम प्रभु श्री राम के प्रति दिखा देते, तो तुम इस संसार के सभी दुखो से मुक्त हो जाते।
इस हाड़-माँस के शरीर से प्यार करने के कुछ नहीं होगा। यदि आपको प्रेम करना ही है, तो प्रभु श्री राम से करों जिनकी भक्ति करने मात्र से ही आप से ही इस संसार के कष्टों से मुक्त हो जाओगे और आपको मोक्ष की प्राप्ति हो जायेगी।
इस लाइन का तुलसी पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि वे उसी समय सब कुछ त्यागकर के काशी आ गए। और बाद में तुलसीदास जी कशी में श्री राम का नाम जपते हैं कीर्तन करते हैं और पूजा अर्चना में अपना सारा समय बिताते हैं तुलसीदास जी को संत महर्षि जागदेव जी अयोध्या भेज देते हैं और रामायण का हिंदी रूपांतरण करते हैं, जिसे रामचरितमानस के नाम से जाना जाता है।
तुलसीदास की 12 रचनाएं कौन कौन सी है ?
- रामचरितमानस
- विनयपत्रिका
- बालकाण्ड
- अयोध्याकाण्ड
- अरण्यकाण्ड
- किष्किन्धाकाण्ड
- सुंदरकाण्ड
- लंकाकाण्ड
- उत्तरकाण्ड
- हरिष्चरित्रकाव्य
- कवितावली
- दोहावली
रामचरित मानस लिरिक्स
चौपाई
बंदउ गुरु पद पदुम परागा।
सुरुचि सुबास सरस अनुरागा।।
अमिय मूरिमय चूरन चारू।
समन सकल भव रुज परिवारू।।
सुकृति संभु तन बिमल बिभूती।
मंजुल मंगल मोद प्रसूती।।
जन मन मंजु मुकुर मल हरनी।
किएँ तिलक गुन गन बस करनी।।
श्रीगुर पद नख मनि गन जोती।
सुमिरत दिब्य द्रृष्टि हियँ होती।।
दलन मोह तम सो सप्रकासू।
बड़े भाग उर आवइ जासू।।
उघरहिं बिमल बिलोचन ही के।
मिटहिं दोष दुख भव रजनी के।।
सूझहिं राम चरित मनि मानिक।
गुपुत प्रगट जहँ जो जेहि खानिक।।
[दोहा/सोरठा]
जथा सुअंजन अंजि दृग साधक सिद्ध सुजान।
कौतुक देखत सैल बन भूतल भूरि निधान।।
Shri Ram Charit Manas Video
Tulsidas Ji Ke Guru Ka Naam
Tulsidas Ke Guru Kaun The FAQS
तुलसीदास के गुरु कौन थे?
तुलसीदास के गुरु नरहरिदास थे।
नरहरिदास का जन्म कब हुआ था ?
नरहरिदास जी का जन्म सन् 1733 में भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में हुआ था।
तुलसीदास जी का जन्म कब हुआ था ?
तुलसीदास जी का जन्म 1532 ईस्वी में हुआ था।
तुलसीदास जी के माता पिता का क्या नाम था ?
तुलसीदास जी के माता पिता का नाम अत्मराम और हुलसीबाई था।
तुलसीदास जी की शादी किस से हुयी थी ?
तुलसीदास जी की शादी रत्नावली से हुयी थी।
तुलसीदास जी की कितने संताने थी
तुलसीदास की नो संताने थी।
तुलसीदास की कौन-कौन सी कृतियां हैं?
तुलसीदास की प्रमुख कृतियां ‘रामचरितमानस’, ‘दोहावली’, ‘कबितावली’, ‘गीतावली’, ‘विनय पत्रिका’ और ‘खंडन खंडखाद्य’ हैं।
क्या तुलसीदास ने अपने गुरु को श्रद्धान किया था?
हां, तुलसीदास ने अपने गुरु को श्रद्धान किया और उनकी मार्गदर्शन में चलकर अपना जीवन महान और साहित्यिक बनाया।
तुलसीदास के गुरु ने उन्हें कौन-सी रचना करने के लिए प्रेरित किया?
नरहरिदास जी ने तुलसीदास को रामचरितमानस की रचना करने के लिए प्रेरित किया। रामचरितमानस तुलसीदास की महान रचनाओं में से एक है।
रामचरितमानस किस ने लिखी थी ?
रामचरितमानस तुलसीदास जी द्वारा लिखी गयी हैं।